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मीडिया का दोहरा चरित्र उजागर




नीरा राडिया के टेपों ने देश के कई धुरंधर पत्रकारों की धूल उड़ा दी। उनमें से कुछ तो जैसे जमींदोज हो गये हैं, कुछ डैमेज कन्ट्रोल के बारे में सोच रहे हैं और कुछ इतने अब्बल दर्जे के वेशर्म हैं कि वे चोरी और सीनाजोरी कर रहे हैं। उन की हालत उस अंधे आदमी की तरह है जो कहीं भी बैठ जाता है और सोचता है कि दुनिया में अंधेरा ही अँधेरा है और उसे कोई नहीं देख रहा। ऐसे ही एक दागी पत्रकार हैं चैनल के पत्रकार हैं…..काफी चर्चित भी हैं..नाम लेने पर झुझलाते हैं। मेरा सुझाव है कि इन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए….।।।। क्योंकि नीरा राडिया के इशारों पर जो काम वे कर रहे थे उसके लिए मेरे पास और कोई शब्द नहीं है कि उनका नया नामकरण करू पर जिस प्रकार से कार्पोरेट घरानों को लाभ दिलाने के लिये दीप जलाते थे उसे उनके इस हुनर को बखूबी समझा जा सकता है। वे दागी पत्रकारों का बचाव भी करते हैं…..हालांकि वह न केवल निंदनीय है बल्कि कुत्सित भी है। तब शायद जनता को यह नहीं पता था कि राडिया के इशारे पर नाचने बालों में इन महोदय का नाम भी उन दलालों में शामिल है। राडिया प्रकरण में ज्यादातर नाम अंग्रजी पत्रकारों के थे इसलिए उन्हे उतनी बदनामी नहीं मिल सकी जितनी मिलनी चाहिए थी। यह देश का दुर्भाग्य है कि कुछ पत्रकार पैसा कमाने के लिए अंग्रेजी की सेवा करते है और नाम कमाने के लिए हिन्दी का इस्तेमाल करते हैं । यदि राडिया टेपों में हिन्दी अखबार वाले पत्रकारों के नाम अधिकता में रहे होते तो पहले तो हिन्दी अखबार ही उनका मटिया मेट कर देते और फिर न्यूज चैनल भी उनपर गिद्ध की तरह टूट पड़ते। उनके जनाजे को घर घर घुमाते और न जाने क्या क्या चिल्लाते ……।

आज कार्पोरेट, मंत्रालयों, सचिवों और बड़े बडे़ अधिकारियों के मध्य दलाली करने के लिए अंग्रेजी जानना बहुत जरूरी है। क्योंकि अंग्रेजी के माध्यम से किसी भी विभाग में घुसकर आसानी से जगह बनाई जा सकती है। अतः अंग्रेजी बोलने वाले दलाली के समन्दर में गहरे तक उतर जाते हैं। मेरा तो नीरा को सुझाव है कि तुम कुछ नकाबपोश पत्रकारों के नाम अपनी तरफ से उजागर कर दो तो कम से कम एक अच्छा काम तो तुम्हारे खाते में जुड़ जाएगा । चैनल के इस पत्रकार द्वारा हाल ही में प्रधान मंत्री के नाम एक खुला खत लिखा गया। इस खुले खत में चमचागीरी की सारी हदें पार कर दी गईं। उस चिठ्ठी का एक हिन्दी के प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक भस्कर द्वारा प्रकाशित किया गया । जिद करो दुनिया बदलो का नारा देने वाले इस प्रतिष्ठित अखबार से मेरा निवेदन है कि दलाली में संलिप्त पत्रकारों की अपवित्र लेखनी से निकले हुए चमचागीरी के शब्दों का बहिस्कार करें । यह कुछ कुछ उसी तरह का कृत्य है जैसा कि कोई इस समय राजा की भ्रष्टाचार के विरूद्ध मार्मिक अपील छापना । अब मैं उस खुले खत के बारे में चर्चा करूंगा। उस चिठ्ठी में सम्बोधन है, प्रिय डा.सिंह ……जरा सोचिए एक ऐसा पत्रकार जिसका नाम अभी हाल ही में दलालों की लिस्ट में शामिल किया गया हो, क्या वो भारत के प्रधान मंत्री से इतना अंतरंग है कि उन्हें प्रिय डा. सिंह कहकर संम्बोधित करता है? या फिर वो इस सम्बोधन के द्वारा जांच एजेंसियों को अपना प्रभाव दिखाने की कोशिश कर रहा है कि यदि किसी मामले में मेरे खिलाफ भी कोई सबूत मिल जाए तो मेरे उपर हाथ डालने की कोशिश मत करना मैं बहुत पावर फुल हूं । प्रधान मंत्री मनमोहन का खास हूं । या फिर इस पत्र के पीछे छिपा हुआ एक ऐसा शातिर दिमाग है जो एक तीर से कई निशाने साध रहा है । इस पत्र में बडी़ चतुराई से प्रधान मंत्री की मासूमियत और ईमान दारी के पक्ष में कसीदे काढे़ गए हैं।

प्रथम द्रष्ट्या पत्र से ऐसा महसूस होता है कि यह पत्र राष्ट्र के हित में किसी देशभक्त और ईमानदार व्यक्ति द्वारा भारत के प्रधान मंत्री को की गई मार्मिक अपील है । किन्तु पूरा पत्र पढने के बाद यह समझ में आने लगता है कि यह चमचागीरी करने प्रयास किया जा रहा है। यह प्रायोजित पत्र प्रधान मंत्री पर एक उपकार के रूप में लिखा गया है जो देखने में कुछ भी दिखे पर बास्तविकता में चमचागीरी, हित साधन और उनके मन में स्वयं के प्रति सिम्पैथी पैदा करवाने के प्रयास से अधिक कुछ भी नहीं। इस पत्र को लिखकर वह प्रधान मंत्री को बताना चाहते हैं कि जब पूरा देश भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप की टाग खिंचाई कर रहा है तब आपका अपना अपने पत्रों के द्वारा जनभावनाएं आपके पक्ष में करने का प्रयास कर रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा केरोसीन का लेंम्प जलाकर पढ़ना, पुरानी मारूति 800 कार से चलने का इन सारी घटनाओं का खत में वर्णन करना आम आदमी के मन में उनके प्रति सहानभूति और आदर पैदा कराने का प्रयास है। प्रधानमंत्री की अप्रत्यक्ष वन्दना करने वाले इस पत्रकार को में बता दॅं कि चम्बल के किनारे आज भी एसे कई गांव हैं जहां आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है वहां के बच्चे आज भी कैरोसिन की चिमनी में पढ़ते हैं। कभी उनके लिए खत लिखने का विचार नहीं आया आपके मन में, कैसे आता कार्पोरेट जगत की वन्दना करने से फुर्सत ही नहीं मिली ।

2जी प्रकरण में जब तक ए.राजा का इस्तीफा नहीं हो गया मीडिया ने खूव दबाव बनाया, आदर्श सोसायटी घोटाले में अशोक चव्हाणा के इस्तीफे के बाद भी मीडिया ने खूब मेहनत की। फिर पत्रकारों के मामले मे यह दोहरा चरित्र क्यों? मीडिया ने क्यों एसा अभियान नहीं चलाया कि जबतक दागी पत्रकारों पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो जाती या ये स्वयं को निर्दोष सिद्ध नहीं करते तब तक हम इन भ्रष्ट पत्रकारों का बहिष्कार करेंगे ? ईमानदारी के नाम पर यह दोहरा चरित्र क्यों। भ्रष्टाचार पर मीडिया का नेताओं के लिए अलग और पत्रकारों के लिए अलग व्यबहार क्यों? अगर ईमानदार पत्रकार भी दलाल पत्रकारों का साथ देने लगेंगे तो फिर मीडिया को भ्रस्टाचार के खिलाफ बोलने का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा। जो लोग पत्रकार जगत के आइकान कहे जाते थे, उनकी सजा भी आइकान होनी चाहिए। वैसे भी इन तथाकथित अंगरेजी दा पत्रकारों ने बहुत पैस कमा लिया है अतः इन्हें पत्रकारित छोड़कार कोई व्यवसाय शुरू कर देना चाहिए। देश के सभी अखबारों एवं पत्र पत्रिकाओं से मेरा अनुरोध है कि जब तक ये दागी पत्रकार निर्दोष साबित नहीं हो जाते तब तक इनके किसी भी बिचार और लेख को प्रकाशित न करें ।

कभी पेड न्यूज के खिलाफ अभियान शुरू करन वाले आज खुद उस दल दल में पाए गये हैं जिसकी वे निन्दा किया करते थे। दलाल पत्रकारों के लिए एक स्वतंत्र हिन्दी पत्रकार की तरफ से नव वर्ष पर किसी शयर का ये शेर सप्रेम भेंट……

शोहरत की आरज़ू ने किया बदचलन उन्हें इतनी बडी़ गरज कि उसूलों से हट गए ।

रामकिशोर उपाध्याय की रिपोर्ट ग्वालियर से।

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