कोरोना कोरोनिल और आयुर्वेद
(प्रकाशित आलेख )
अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों एवं धनलोलुप चिकित्सकों की एक बड़ी लॉबी
विश्वस्तर पर सक्रिय है | शासकीय अस्पतालों में कौन-सी दवाओं को प्रयोग में लाया
जाएगा, किस देश में कौन-सी दवाओं पर
प्रतिबन्ध होगा आदि निर्णयों को प्रभावित करने के लिए बड़े स्तर पर षड्यंत्र रचे
जाते हैं | पिछले वर्ष अमेरिका में 20-22 दवा कंपनियों पर लगभग सौ दवाओं की कीमतों
में एक हजार प्रतिशत की बढ़ोतरी करने के लिए षड्यंत्र रचाने के आरोप में परिवाद
प्रस्तुत किया गया है | इनमें भारत की सात
कंपनियों के भी नाम हैं | अनुचित व्यापर करने की अपराधी ये कम्पनियाँ यदि अमेरिका
तक को चूना लगा देती हैं तो भारत में ये किस हद तक अनुचित ठगी करती होंगी, कल्पना की जा सकती है |
पता नहीं क्यों हमारे देश में फार्मास्युटिकल
कम्पनियों के घोटाले या अनैतिक डील पर कोई बड़ा विरोध या आन्दोलन अभी तक सुनने में
नहीं आया | स्वतंत्र पत्रकार श्री आलोक तोमर (स्व.) जब कैंसर से जूझ रहे थे तब
उन्होंने उपचार के नाम पर होने वाली इस खुली-लूट की चर्चा अपने कुछ आलेखों में की थी | भारत में असाध्य रोग
पीड़ित रोगी को और दवा कम्पनियाँ व निजी अस्पताल रोगी की संपत्ति को निगल जाते हैं
|
विचारणीय प्रश्न यह है कि,क्यों पतंजलि की कथित
कोरोना दवा ‘कोरोनिल’ अपनी लाँचिंग के पाँच घंटे
बाद ही विवाद के घेरे में आगई | आयुष मंत्रालय ने विवाद बढ़ता देख आनन-फानन
में इसके प्रचार पर प्रतिबंध भी लगा दिया | केंद्र सरकार को दवा के क्लिनिकल ट्रायल के प्रमाण व अन्य
डाटा की माँग करनी पड़ी | पतंजलि की ओर से दिए गए स्पष्टीकरण में सभी मानकों के पूरा करने का दावा किया गया है आशा है
मंत्रालय संतुष्ट हो जाएगा | किन्तु आयुष
मंत्रालय की यह बात भी बड़ी बिचित्र है, एक ओर वह स्वयं काढ़ा पीने और आयुर्वेदिक
पद्धति से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की अपील कर रहा है और दूसरी ओर आयुर्वेदिक औषधि
से कोरोना उपचार के पतंजलि के प्रचार से घबराया हुआ है | एलोपैथी (पाश्चात्य चिकित्सा) वाले चिकित्सकों या विशेषज्ञों को यह
अधिकार एवं योग्यता किसने दी कि वे किसी दूसरी
पद्धति (जिसका उन्होंने अध्ययन ही नहीं किया) के सन्दर्भ में कोई सिद्धांत या मत
प्रस्तुत करें | क्या आयुर्वेद के किसी भी आचार्य अथवा वैद्य को एलोपैथी पद्धति से
उपचार करने या सिद्धांत पतिपादित करने की अनुमति है यदि नहीं तो फिर पाश्चात्य
चिकित्सा पद्धति के वैज्ञानिक अपनी सीमा का अतिक्रमण कैसे कर सकते हैं ? यदि सरकार
यह मानती है कि आयुर्वेद के पास रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दवाएँ और योग्यता
है तो उसे इस विपत्ति को अवसर में बदलते हुए (जैसा कि सरकार ने कहा है) आयुर्वेद
को अपनी क्षमता सिद्ध करने का उचित अवसर देना चाहिए | पतंजलि ही क्यों राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान एवं सुख संचार आदि विख्यात औषधालयों
को भी इस दिशा में शोध हेतु प्रेरित व अनुदानित करना चाहिए |
एलोपैथी में रोगी के मरने या ठीक न होने पर किसी भी डॉक्टर या दवा कम्पनी हेतु दंड का
प्रावधान नहीं है | फेयर एंड लवली से आज तक कोई भी गोरा नहीं हुआ | ज़हरीले
रासायनिक पेय (कोल्ड्रिंक्स) भ्रामक प्रचार द्वारा धूम-धाम से बेचे जाते हैं |
किन्तु स्वदेशी उपचार पद्दति (आयुर्वेद) के लिए सौ-सौ अग्नि परीक्षाएँ हैं क्यों ?
कोरोना के गंभीर एवं एक्टिव रोगियों का उपचार पाश्चात्य पद्धति से कीजिये किसने
रोका है किन्तु सामान्य या लाक्षणिक रोगियों को क्यों लुटने दिया जाए | कोरोना
की दवा के अभाव में सभी देशों के डॉक्टर्स अनुमान से उपचार कर रहे है | लोगों को
अंधा-धुंध प्रतिजैविकों के भारी डोज दिए जा रहे हैं | इस घोर निराशा के वातावरण
में यदि आयुर्वेदिक चिकित्सक किसी
सुरक्षित एवं बिना साइड इफेक्ट वाली दवा के सफ़ल परीक्षण (क्लिनिकल ट्राइल )
का दावा करते हैं तो उन्हें अपनी योग्यता सिद्ध करने का अवसर दिया जाना चाहिए |
पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति से जुड़े लोग अब तक आयुर्वेद को घरेलू नुस्खा कहकर
अपमानित और बहिस्कृत करते रहे हैं | किन्तु इस बार आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने जो
औषधि प्रस्तुत की है वह अरबों-खरबों के फार्मास्यूटिकल व्यापार के लिए खुली चुनौती
है | सभी एलोपैथी चिकित्सक इम्युनिटी- इम्युनिटी चिल्ला रहे हैं | वे इम्युनिटी बढ़ाने के लिए
आयुर्वेद के सामने दंडवत भी हैं किन्तु आयुर्वेदिक पद्धति उपचार में उनके सामानांतर खड़ी हो कर उनके
व्यवसाय को चुनौती दे, इसे वे कैसे स्वीकार कर सकते हैं |
बात पतंजलि या कोरोनिल की नहीं है, वैकल्पिक भारतीय
चिकित्सा पद्धति की है | यही अवसर है जब एलोपैथी (पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति) ने
हाथ खड़े कर दिए हैं और आयुर्वेद ने कोरोना
से लड़ने हेतु एक मार्ग सुझाया है उस पर चल कर देखिए, आगे बढ़िए, और शोध कीजिये,लाभ
मिले तो और आगे बढ़िए | उसे किसी विचारधारा, दल या लॉबी के चश्मे से मत देखिए |
मेडिकल साइंस की भाँति आयुर्वेदिक साइंस को भी सामान संसाधन और अवसर देकर देखिए,
आयुर्वेदिक शोधार्थी भारत को चिकित्सा क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने में बड़ा
योगदान दे सकते हैं |
डॉ.रामकिशोर उपाध्याय
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)
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